यह शब्द बड़ा ही अर्थक है
इसमें संशय निरर्थक है
वो कह्ते इसमें प्रतिष्ठा है
शायद सबकी ही निष्ठा है
रुधिर सनी इन देहों में
दमित शून्य इन नेहों में
उनको ऑनर मिल जाता है
सन्तान ॠण धुल जाता है
प्रेम शब्द ही ईश्वर है
उनके अर्थों में नश्वर है
वे कर्मयोग के पुरोधा हैं
कुरुक्षेत्र में स्वजनों का वध क्या
वो स्वपुत्र-पुत्रियां हनते हैं
मुख में रामायण रखते हैं
और सीता का वध करते हैं
हे कृष्ण! दो आशीष उनको
वे उसके सच्चे अधिकारी हैं
तुम एक गीता के प्रणेता हो
वो हर दिन गीता रचते हैं।
bahut sahi kaha aapne
ReplyDeleteपॉल बाबा का रहस्य आप भी जानें
http://sudhirraghav.blogspot.com/
अति सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! संवेदनाओं को प्रस्तुतीकरण काबिले तारीफ है. शुभकामनाओ सहित!
ReplyDeleteआपका
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है।
इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, सरकार या अन्य किसी से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३६४ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
"तुम एक गीता के प्रणेता हो
ReplyDeleteवो हर दिन गीता रचते हैं"
बहुत खूब - लाजवाब - हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत खूब...
ReplyDeleteब्लागिंग की दुनिया में आपका स्वागत है. हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
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इंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी के लिए-
http://gharkibaaten.blogspot.com
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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